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वह कुछ नहीं कहेगी / रश्मि भारद्वाज

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कलाइयों की लाल हरी चूड़ियाँ खिसका कर
वह टाँकती है कुछ अक्षर
और दुपट्टे के कोने से पोंछ लेती है
अपनी हदें तोड़ते बेशर्म काजल को

माँ के नाम रोज़ ही लिखती है वह चिट्ठियाँ
और दफ़न कर देती है उसकी सिसकियों को
सन्दूक के अन्धेरों में दम तोड़ने के लिए
वही सन्दूक जिसे माँ ने
उम्मीदों के सतरंगी रंगों से भरा था
और साथ ही भरी थीं कई दुआएँ
बिटिया के ख़ुशहाल जीवन की

माँ को अलबत्ता भेजी जाती हैं
कुछ खिलखिलाहटें अक्सर ही
जिसे सुन कर थोड़ा-सा और
जी लेती हैं वह
मर ही जाएँगी वे गर जानेंगी कि
उनकी बिटिया के माथे पर चिपकी गोल बिन्दी से
सहमा सूरज सदा के लिए भूल गया है
देना अपनी रोशनी
और उसके घर अब चारों पहर
बसता हैं सिर्फ अन्धेरा

कैसे जी पाएँगी वह
गर जान जाएँगी कि
उसकी माँग में सजी सिन्दूर की सुर्ख लाल रेखा
बँटी हुई है कई और रेखाओं में
और झक्क सफ़ेद शर्ट पर
रेंगती आ जाती हैं
उसके बिस्तर तक भी
कैसे सुन पाएँगी वह
कि पिछली गर्मियों जिन नीले निशानों पर
लगाया करती थी वह ढेर सारा क्न्सीलर
वह किसी के प्रेम की निशानी नहीं थे

नहीं, वह कुछ नहीं कहेगी
और शायद कभी ख़ुद भी
दफ़न कर दी जाएगी
किसी सन्दूक में
हमेशा के लिए