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वह दिन न भूलता पूछ रहे “कैसे आया यह परिवर्तन / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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वह दिन न भूलता पूछ रहे “कैसे आया यह परिवर्तन।
अब लज्जानत होती पलकें पहले था चंचल दृग-नर्तन।
थी कभीं खिलखिलाकर हॅंसती अब केवल मुसका देती हो।
भोलापन बाल-सुलभ बिसरा पटु बाते उकसा देती हो।
थी अभीं वसन वेष्टित पलभर में कंचन देह उघर जाती।
थी अभीं जुडी़ जूही जूडे़ में पल में अलक विखर जाती”।
आ वयः संधि के उदगाता! बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥110॥