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वह नहीं देखती आसमां के बदलते रंग / रश्मि भारद्वाज

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कुछ लड़कियाँ
छुपा कर रखती हैं वह पन्ने
जो कर आते हैं उनके उजालों की चुगली स्याह रातों से
पर लाख छुपाए जाने पर भी
वह लौट आते हैं हर बार नई सतरंगी जिल्द के साथ
ढिठाई से सेंकते हैं धूप घरों की मुण्डेरों पर
ताकि हवा के पहले झोंके के साथ ही
गुनगुना आए हर कान में कुछ क़िस्से
जिन्हें समेट कर रखा गया था दुपट्टे की तहों में
या कि बड़े ही जतन से खोंसा गया था
दिल की धड़कनों के करीब, कपड़ों की सिलवटों के बीच कहीं
कि उन पर भूले से वह लिख बैठी होती हैं प्रेम और जीवन

अजीब होती हैं कुछ लड़कियाँ
आसमां के बदलते रंगों से अनजान
धरती को नज़रों से निगलती हैं
कि जैसे नज़र हटते ही लड़खड़ा जाएँगी
सीने से चिपकाए रखती हैं सवा दो मीटर लम्बी आबरू
लेकिन फिर भी भर जाती हैं अपराध-बोध से
एक्स रे लगी नज़रों को ख़ुद के आर-पार उतरते महसूस कर
घबरायी हिरनी-सी भागती हैं एक सुरक्षित ठौर की तलाश में
शायद जानते हुए भी कहीं अन्दर यह बात
कि ऐसी कोई जगह नहीं कहीं जहाँ घात पर ना हो कुछ नुकीले पंजे

इनके सपनों में बहुत जल्दी ही डाल दिए जाते हैं
सफ़ेद घोड़ों पर सवार सजीले राजकुमार
घरोंदों के खेल और गुड़ियों का ब्याह रचाते
काढ़ने लगती हैं तकियों पर गुडनाइट, स्वीट-ड्रीम्स
सहेजती हैं अपना दहेज भी
सहेजे जा रहे कौमार्य के साथ
अर्पण करने को सब कुछ एक अन्जान देवता के नाम
जो अक्सर नहीं जानते अपना देवत्व सम्भालें कैसे

सच, बड़ी अजीब हैं यह लड़कियाँ
जब कि जानती हैं उनके आने पर घुटनों तक लटक गए थे जो चेहरे
पड़ी रहती हैं उनके ही प्रेम में ताउम्र
नोच कर फेंक दिए जाने के बाद भी उस आँगन से
जहाँ से जुड़ी होती हैं नाभि नाल से
हर उस हवा, हर उस राहगीर और हर उस बोली को निहारती हैं
जो छू कर आती हैं उनका देश, उनके लोग और उनका आँगन
हौले से गुनगुनाती यह गीत
अगले जनम मुझे बिटिया ना कीजो

दरअसल इस किस्म की लड़कियाँ जन्म नहीं लेती
उन्हें तो ढाला जाता है एक टकसाल में
ताकि वह ख़रीद सकें ख़ुद को बेच कर
कुछ सपने
और थोड़ी-सी ज़िन्दगी