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वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ / नवनीत शर्मा
Kavita Kosh से
वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ
हौसले सब ज़मीन हो जाएँ
ख़्वाब कुछ बेहतरीन हो जाएँ
सच अगर बदतरीन हो जाएँ
ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ
हम कहाँ तक महीन हो जाएँ
ख़ुद से कटते हैं और मरते हैं
लोग जब भी मशीन हो जाएँ
आपको आप ही उठाएँगे
चाहे वृश्चिक या मीन हो जाएँ.