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वही उम्र का एक पल कोई लाए / शमशेर बहादुर सिंह

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वही उम्र का एक पल कोई लाए
तड़पती हुई-सी ग़ज़ल कोई लाए

हक़ीक़त को लाए तख़ैयुल से बाहर
मेरी मुश्किलों का जो हल कोई लाए

कहीं सर्द खूँ में तड़पती है बिजली
ज़माने का रद्दो-बदल कोई लाए

उसी कम-निगाही को फिर सौंपता हूँ
मेरी जान का क्या बदल कोई लाए

दुबारा हमें होश आए न आए
इशारों का मौक़ा-महल कोई लाए

नज़र तेरी दस्तूरे-फ़िरदौस लाई
मेरी ज़िन्दगी में अमल कोई लाए

शब्दार्थ :

तख़ैयुल=कल्पना; कम-निगाही=उपेक्षा; दस्तूरे-फ़िरदौस= स्वर्गिक संविधान