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वही पगरखी / सुरेश विमल
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वही पगरखी टूटी, मैला वही अंगोछा!
वही मढ़ेया घास-फूस की
आंगन बूढ़ा पेड़ नीम का,
काया वही बिजूकै जैसी
वही नज़ारा रामदीन का!
बरसों से हाड़ों पर उसके
लटका वही अंगरखा ओछा
कोर्ट-कचहरी चलता अब भी
स्याही लगा अंगूठा उसका।
सोने की गिन्नी से कम ना
नोट लगे हैं उसको दस का
अंकित है ललाट पर उसके
जीवन का सब लेखा-जोखा।
मरियल-से हैं बैल वही दो
रामदीन की पूंजी सारी,
दो रुपये वाली बेटे की
पौथी तक उसको है भारी।
वही खेत उसका बिन पानी
है सूखे का खुरचा-नोचा!