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वहीं से / ओम प्रभाकर

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हम जहाँ हैं
वहीं से आगे बढे़ंगें
देश के बंजर समय के
बाँझपन में
याकि अपनी लालसाओं के
अंधेरे सघन वन में

या अगर हैं
परिस्थितियों की तलहटी में
तो वहीं से बादलों के रूप में
ऊपर उठेंगे
हम जहाँ हैं वहीं से
आगे बढे़ंगे

यह हमारी नियति है
चलना पडे़गा
रात में दीपक
दिवस में सूर्य बन जलना पडे़गा

जो लडा़ई पूर्वजों ने छोड़ दी थी
हम लडे़ंगे
हम जहाँ हैं
वहीं से आगे बढे़ंगे