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वात्सल्यमयी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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चिर-वत्सला प्रकृति जननीकेर स्नेहांचल ई साओन-भादव!
देखि विश्व-शिशु ग्रीष्मक पाँतर पड़ल, क्षुधा-ज्वालासँ आतुर
झटकि उठाय कोर भरि बादर स्नेहमयीक द्रवित उर-आँचर
बिन्दु-बिन्दु हृदयक रस पय दय करइत सन्तानक जीवन नव
चिर सत्सला प्रकृति जननीकेर स्नेहांचल ई साओन-भादव।।1।।

शीत - रौदसँ रक्षा पाबओ, ने अभाव जल-अन्नक दाबओ
खेलओ नित कन्दुक कदम्बसँ मुदित मयूर संग भय नाचओ
मेघक अंचल छायामे ही पोषित वत्स, ममत्व नित्य नव
चिर-वत्सला प्रकृति जननीकेर स्नेहांचल ई साओन-भादव।।2।।