भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वापस जो आ गए हो / रवीन्द्र दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वापस जो आ गए हो

रौनक भी आ गई है

तेरे बगैर सूनी दुनिया ही हो चली थी

तपती सी रेत में ज्यों

भटका हुआ मुसाफिर

राहों को खोजता सा

ईश्वर को कोसता हो

जाऊं कहाँ? किधर से?

लेकिन ,

गिला खुदा से

मेरा न अब कोई है

तुम आ गए हो वापिस

सांसे भी लौट आई

हसरत तेरी नज़र थी

आबाद हो गया हूँ

तेरे कदम से हमदम

दुनिया ही चल पड़ी है

तेरे बगैर सूनी दुनिया जो हो चली थी

मकसद भी मिल गया है

हसरत भी मिल गई है

वापस जो आ गए हो

रौनक भी आ गई है ।