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वापसी / प्रदीप जिलवाने
Kavita Kosh से
अरसे बाद
वह सोया भरोसे की नींद
जागा अपनों के बीच
अरसे बाद
चार के बीच बैठ गपियाया कुछ देर
और सेंके अलाव में हाथ
अरसे बाद
चखा कच्चे अमरूद का स्वाद
और उसपर चिपकी मिट्टी का भी
अरसे बाद
लौटी उसके चेहरे पर
उसकी मौलिक खिलंदड़ हँसी
अरसे बाद
उसे लगा कि बाकी है
उसका अभी वजूद कहीं।
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