वाह! क्या न्याय है / असंगघोष
वहाँ चारदीवारी के
बड़े से गेट पर लगे
चौड़े नीले-लाल पुते बोर्ड पर
काले अक्षरों से लिखा था
देशभक्ति,
जनसेवा,
सत्यमेव जयते
सोचा उन्होंने
यहाँ मिलेगा
हमें न्याय
बलात्कारियों को पकड़
सजा दिलाने में
खाकी वर्दीवाला करेगा
हमारी मदद
हमारे बयान के बाद
सलाखों के भीतर होंगे बंद
सभी नौ के नौ बलात्कारी
रोते-रोते खुद को संभाल
बताने लगीं वे
सच-सच
बीच में ही रोक दिया उन्हें दरोगा ने
बोला जैसे कहूँ मैं वैसे ही देने हैं बयान
अब बोलो और बोलती ही रहो
एक के बाद एक
तुम बोलती रहो!
हवलदार करेगा कलमबद्ध
तुम्हारे बयान
रोती हुई वे
आप-बीती सुनाती रहीं
बारी-बारी
जो दरोगा ने चाहा
दर्ज किए गए उनके बयान
और अन्त में हवलदार ने झट से
उनका अंगूठा लगवा लिया
कागज पर
हो गए दर्ज बयान
अब सीधे चली जाओ
अपने घर
आरोपी जल्दी ही पकड़े जाएँगे
दिलाएँगे कड़ी से कड़ी सजा
होगी
सत्य की विजय!
मुकदमा सालों साल चला
फैसला हुआ सुनवाई पूरी होने के
छह माह बाद
दर्ज बयानों में
बलात्कार की बात
थी ही नहीं
गवाह मुकर गए
न ही पहचाने गए बलात्कारी
सन्देह का लाभ मिला
साबित नहीं हुआ जुर्म
आरोपी कोर्ट से बरी हो गए
इस तरह
सत्य की विजय हुई
देशभक्ति पूरी हुई
दरोगा को भी
जनसेवा का प्रसाद मिला
सार्थक हुआ सत्यमेव जयते लिखा?
आँखों पर पट्टी बाँधे
मूर्ति के हाथों
काँटी मारता तराजू स्थिर लटका रहा।