भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विकल्प / अज्ञेय
Kavita Kosh से
वेदी तेरी पर माँ, हम क्या शीश नवाएँ?
तेरे चरणों पर माँ, हम क्या फूल चढ़ाएँ?
हाथों में है खड्ग हमारे, लौह-मुकुट है सिर पर-
पूजा को ठहरें या समर-क्षेत्र को जाएँ?
मन्दिर तेरे में माँ, हम क्या दीप जगाएँ?
कैसे तेरी प्रतिमा की हम ज्योति बढ़ाएँ?
शत्रु रक्त की प्यासी है यह ढाल हमारी दीपक-
आरति को ठहरें या रण-प्रांगण में जाएँ?
दिल्ली जेल, सितम्बर, 1931