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विकास / महेन्द्र भटनागर

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मैं खिलता जाता हूँ प्रतिपल !

तरुवर की डालों पर कलियाँ,
नभ में झिलमिल तारावलियाँ,
धीरे-धीरे आ खिल जातीं लेकर जीवन की ज्योति नवल !
        
सूखी सरिता छल-छल जल भर,
बूँदें मरुथल टप-टप पाकर,
जब जीवन पा जाता कण-कण, मैं भी भर लेता उर में बल !
              
भर कर मीठा हास जगत में,
आया नव मधुमास जगत में,
मेरे स्वर भी बोल उठे, जब कूक उठी पेड़ों पर कोयल !
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