भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विकास हो ग्या बहुत खुशी, गामां की तस्वीर बदलगी / रामेश्वर गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विकास हो ग्या बहुत खुशी, गामां की तस्वीर बदलगी
भाईचारा भी टूट्या सै, अब माणस की तासीर बदलगी
 
पक्की गलियां पक्की नाली, पक्के बणै मकान अडै़
प्रेम के बन्धन कच्चे पडग़े, कच्चे पड़े इंसान अडै़
वो सौंधी खशबू गाम की, होए रिश्ते लहू लुहान अडै़
फैशन की अंधी दौड़ का, घर-घर म्हं घमसान अडै़
दिन-धौळी लिफाफे म्हं, आजादी की तहरीर बदलगी
 
इकठ्ठे हो कै बैठां थे सब, हिन्दू-सिक्ख, ईसाई
टैलीविजन आ गया ईब, घर-घर म्हां सीम बणाई
अपणे घर म्हं सिमट गए हम, या इसी क्रांति आई
गलियां सूनी होगी गामां की, होयी सूनी बैठक-थ्याई
हम नै एक बणाणे वाळी, वा साझा अर सीर बदल गी
 
किस्से कहाणी सुण-सुण कै, अपणे गम भुलाज्यां थे
दुख बांट कै आपस म्हं, दूजे के सुख पाज्यां थे
सांझ ढले सब के सुख-दुख, थ्याई के म्हं आज्यां थे
रळ-मिल कै बतलावैं थै सब, सही रास्ते ठ्याज्यां थे
अपणी होई पीड़ सभी की, सांझे वाळी पीड़ बदलगी
 
विकास तै पहल्यां भाईचारे की, हो थी कला सवाई
इक-दूजे की मदद करैं थे, ना थी ऐसी हाथा पाई
गाम की बेटी सबकी बेटी, कोई बुआ, चाची, ताई
‘रामेश्वर‘ आपस म्हं लड़ रे, ईब रोज यां भाई-भाई
विकास गेल्या गामां म्हं, प्यार की तदबीर बदलगी