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विडम्बना / अनिल शंकर झा

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खोलोॅ लंगोटिया, उतरोॅ पार,
ई नदिा के यही व्यवहार।
लंगटा फानै सात समुंदर,
सधुवा बैठी धुनै कपार।

आँधा-बाँधा मास्टर भेलै,
बीस बरस मे सतवाँ पास।
नाम लिखै में तीन टा गलती,
चटिया के करतै उद्धार।
हिनकोॅ मीता पंचो-छंगो,
चकुआ मारै में उस्ताद।
कौनें कहतै हाकिमोॅ आगू,
केकरा जीवन होय छै भार?
लंगटा फानैसात समुंदर,
सधुवा बैठी धुनै कपार।

पैसा दै केॅ डिगरी लै केॅ
डाक्टर रामधनी सिंगार।
रोज चकाचक चानी काटै,
पैसा के लगलै अंबार।
अपरेशन में रोज छुटै छै,
पेटोॅ में कैंची औजार।
रोगी मरल्हौ? केकरा कहभौ?
थाना पर हुनके अधिकार।
मुखिया एस.पी. जोॅज, मिनिस्टर,
सब्ने छै पैसै के यार।
लंगटा फानैं सात समुंदर,
सधुवा बैठी धुनै कपार।