विडम्बना / दीप्ति पाण्डेय
हम
दो समानांतर रेखाओं की मानिंद
साथ तो चल सकते हैं
मिल नहीं सकते!
हम
वृत्त की धुरी और परिधि की मानिंद
एक दूजे की परिक्रमा तो कर सकते हैं
मिल नहीं सकते!
हम
धरती आकाश की मानिंद
किसी छोड़ पर मिलते दिखाई तो दे सकते हैं
मिल नहीं सकते!
हम
जटिल समीकरणों की मानिंद
संभावना तो हो सकते हैं
सिद्ध नहीं हो सकते!
हम
हड़प्पा लिपि की मानिंद
मन और देह के संकेत तो हो सकते हैं
पढ़े नहीं जा सकते!
हम
शुतुरमुर्ग की मानिंद
विवशता की खोल में मुँह तो छिपा सकते हैं
लड़ नहीं सकते!
हम
कायरों की मानिंद
छिपकर एक रिश्ता तो बुन सकते हैं
स्वीकार नहीं कर सकते!
हम
हारे थके मुसाफिर की मानिंद
साथ सफर शुरू तो कर सकते हैं
खत्म नहीं कर सकते!
हम
विवश हैं उस विडम्बना की मानिंद
अपनापन बाँट तो सकते हैं
अपना नहीं सकते!