भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वितस्ता तट पर / निदा नवाज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 (१)
बुझा नहीं सकती
वितस्ता भी
हमारे सपनों में लगी
आदम–खोर आग
वह देखो
कश्तियों के घर भी
जल गए
इस आग से
बीच वितस्ता के.
 (२)
वे जो बहाते हैं लहू
हमारे शहर में
हमारे ही बच्चों का
वह देखो
वितस्ता ले जाती है
एक-एक बूंद
अपने पानी के साथ
उन्ही के देश में
और पीते हैं वे
पानी के साथ-साथ
हमारा लहू भी.
 (३)
हॉउस बोट में रहने वाले
पड़ोसी पर्यटक ने
मल्लाह के बेटे को सिखाया
बीच कश्ती में करना सुराख़
और वितस्ता तट पर बैठे
वह देख रहा है तमाशा
कश्ती के डूबने का.
 (४)
मन के बीच बहने वाली
वितस्ता के तट पर बैठा
एक साया
फैंक रहा है पत्थर
बीच लहरों के
और धुल जाती हैं लहरें
लालिमा के रंग से.