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विनय / सुमित्रानंदन पंत

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मा! मेरे जीवन की हार
तेरा मंजुल हृदय-हार हो,
अश्रु-कणों का यह उपहार;
मेरे सफल-श्रमों का सार
तेरे मस्तक का हो उज्जवल
श्रम-जलमय मुक्तालंकार।

मेरे भूरि-दुखों का भार
तेरी उर-इच्छा का फल हो,
तेरी आशा का शृंगार;
मेरे रति, कृति, व्रत, आचार
मा! तेरी निर्भयता हों नित
तेरे पूजन के उपचार--
यही विनय है बारम्बार।

रचनाकाल: जनवरी १९१८