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विनयावली(राग टोड़ी ) / तुलसीदास

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विनयावली(राग टोड़ी )
(78)

देव-
दीनको दयालु, दानि दूसरो न कोऊ।

जाहि दीनता कहैां हौं देखौं दीन सोऊ।।

 सुर, नर, मुनि, असुर, नाग, साहिब तौ घनेरे।

 पै तौ लौं जौ लौं रावरे न नेकु नयन फेरे।।

त्रिभुवन, तिहुँ काल बिदित, बेद बदति चारी।

आदि-अंत-मध्य राम! सहबी तिहारी।।

तोहि माँगि माँगनो न माँगनो कहायो।

सुनि सुभाव-सील-सुजसु जाचन जन आयो।।
 
पाहन-पसु बिटप- बिहँग अपने करि लीन्हे।

महाराज दसरथके! श्रंक राय कीन्हें।।

तू गरीबको निवाज, हौं गरीब तेरो।

बारक कहिये कृपालु! त्ुलसिदास मेरो।।