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विपर्यय / मार्कण्डेय प्रवासी
Kavita Kosh से
चोरो पबैये-
साधुक प्रणाम !
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!
नामी लुटेरा रखबार अछि
बटमार डाकू घटबार अछि
सगरो लगईयै विश्वास वाम!
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!
व्यभिचार बनि गेल आचार अछि
व्यवसाय सेवाक संसार अछि
उजड़ल लगैए निष्ठाक गाम!
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!
बदलल लगैए कविता-कथा
परसल लगैए अगबे व्यथा!
झूठो बिकैए साँचेक दाम!
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!