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विफल कविताएँ / शशिप्रकाश

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ख़ून और पसीने से
कविता, बस, थोड़ा-सा नमक लेती है,
ऋतुओं से कुछ मनचाहे रंग,
अनगिन स्मृतियों और अनुभवों से
कुछ छायाएँ, कुछ आहटें, कुछ कौंधें,
सपनों के विशाल गोदाम से कुछ फंतासियाँ और कुछ जादू,
विस्तृत मैदानों, बीहड़ जंगलों, चुनौती देते पहाड़ों,
निचाट रेगिस्तानों, चिलकते पठारों,
नदियों और समन्दर से
कुछ रूपक और कुछ बिम्ब I

.

इतना सारा उद्यम करती है कविता कि
लोगों का जीवन अपनी सारी यात्राओं,
सारी तक़लीफ़ों, सारी पराजयों और असफलताओं,
सारी मानवीय ईर्ष्याओं और उदासियों,
सारी उपलब्धियों और उल्लासों,
सारी स्मृतियों और सपनों,
सारे पश्चातापों और अतृप्तियों,
सारी उम्मीदों और हठों के साथ,
ज़्यादा से ज़्यादा हद तक उसमें समा सके
और कविता का जीवन सार्थक कर सके I

.

बहुत कम कविताएँ
यह लम्बा सफ़र तय करके
मंज़िल तक पहुँच पाती हैं I
शेष रास्ते में ही कहीं
ग़ुमनामी की मौत मर जाती हैं
या कुछ दिनों बाद भुला दी जाती हैं !
लेकिन उन विफल, अधूरी, गतलक्ष्य
कविताओं के बिना भी
मनुष्यता का इतिहास नहीं लिखा जा सकता
और न ही कविता का !

.

विफलताओं और पराजयों का इतिहास भुला देना भी
एक मनुष्यद्रोही और काव्यद्रोही
कृतघ्नता है !

05 दिसम्बर 2021