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विलायती बच्चे / दामोदर जोशी 'देवांशु'

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राम हो गऐ हैं रामा, कृष्ण कृष्णा
बुद्ध भगवान हो गऐ हैं बुद्धा
क्या पढ़े-लिखे लोग हो गऐ निर्बुद्धा !

माँ मम्मी-मामा, पिता डैडी
औरतें हो गईं हैं सब लेडी
वही मोटी कोन्दो की रोटियाँ
वही लोहार से अभी लाया गया ज्यों धान का कनस्तर
वही बर्तन वहीं निवाण की चारपाइयाँ
वही भट का जौला ज्यों पानी का नौला
शरीर की तरह ही फटा लटकता पाजामा

किन्तु कहीं रास्ता लगते समय टाटा-टाटा!
अभी आ गए, आगे कभी न आना इस रास्ते
पागलपन आ गया है, चला गया है मिलना, भेंट देना
गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग, सभी जगह गुड-गुड
प्रणाम-जीते रहो, मैं रहूँ, तुम रहो-लौटा दी है पीठ
दीदी, बहन, एक चूल्हा, मैं छोटी-तू बड़ी
(टू कप टी) तू कपटी, मैं कपटी-बाइ, जैसा बक रहे हैं सब
हम यहाँ कहाँ से आए हैं !
कहाँ गए वे देवरानी, जेठानी-सासू माँ, चाची, ताई के दिन
कहाँ गए वे जवाँई-साले, मामा-मामी के दिन
कहाँ गए वह चाचा, ताऊ, दादाजी, ननद-भौजाई के दिन
भाई खोया, बहन खोई-सिस्टर मिस्टर! बहर ही बाहर !
नाई, मांणे (पहाड़ी वस्तुऐं मांपने के परंपरागत बर्तन) खोए
गाँव-घरों तक पहुँच गया यह कोहरा

कल साँप बन जाएगा यह केंचुआ
डंक मारेगा कलेजे में
अपनी चीजें मानी जा रहीं निकृष्ट
कभी नहीं देखी ऐसी समय से पूर्व शाम
अंकल-आन्टी ! सॉरी-सॉरी हो गई है बहुत ही
क्या देखते हो, बज गई है खतरे की घन्टी
कोई है, जो तोड़ देगा इस फन्दे को
मनुष्य मनुष्य को यू-यू (कुत्ते की तरह ) कर्कश पुकार रहा है
अनहोनी!
क्या सब बिलायती बच्चे हो गऐ !

मूल कुमाउनी पाठ

राम है गईं रामा, कृष्ण कृष्णा
बुद्ध भगवान है गईं बुद्धा-
के पढ़ी-लेखीं मैंस है गईं निबुद्धा !
इज मम्मी-मामा, बौज्यू डैडी
स्यैणीं सब है गईं लेडी

उईं मोट हाफसूल जस मडुवक कन्तर
आफर बटि ऐलैं ल्यायीं जस धानक कन्टर
उईं भाड़ उईं पटबाड़
उईं भटक जौव जाणि पाणिक नौव
जंगी-सुर्याव-आंगाक् बात-बात
आंगाक् चिर पड़ीं ल्वात
बाट बटीण बखत टाटा-टाटा !
आज ऐगोछा अघिल फ्यार कभै झन आया यै बाटा
ऐगो बौयाट ल्हैगे भेट-घाट
गुड् मौरनिंग, गुड इविनिंग, सबै जाग गुड-गुड
पैलाग-जी रौ, मैं रौं तु रौ-फरके हालौ पुठ !
दिदि-भुलि एक चुलि, मैं नानि तु ठुलि
तु कपटी मैं कपटी-बाइ में बस बकणईं सब
ऐ गयां हम यां कां बटि !

कां गाय उं दिराणि जिठाणि-दिज्यू काखि-जेड़जाक् दिन
कां गाय काक-जिठबाज्यु नन्द-भौजि-पौणिक दिन
भै हराय, बैणि हरायि-सिस्टर मिस्टर ! भ्यैर भ्यैरै !
नाई हराण मांण हरांण फरुवांकि चौल !

गौं-घरों तक लै छोपणौ हौल
भोलहुं स्याप बणि जाल यो गिदौल
ठपैक मारल कल्ज में
टापणि चीज हैरै ह्याव
कभै नि देखि इतणि असन-अब्याव
अंकल-आन्टी ! सौरी-सौरी हैगे औरी
के चै रौछा बांजि गे खतरकि घन्टी
क्वे छा रे ! जो फेड़ि द्यला मेरि फिन्द
मैंस-मैंस कैं यू-यू कै बेर धत्यूणईं
अणहोति !
के सब बिलैन्ती प्वाथ है गईं