कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रहीम]][[Category:कविताएँ]]}}
[[Category:दोहे]]
[[Category:<poem>छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।कह रहीम]]हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥
छिमा बड़न को चाहियेदुख में सुमिरन सब करे, छोटन को उतपात।<br>सुख में करे न कोय।कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥<br><br>सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥
तरुवर फल नहिं खात हैखैर, सरवर पियहि न पान।<br>खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।कहि रहीम पर काज हितरहिमन दाबे न दबै, संपति सँचहि सुजान॥2॥<br><br>जानत सकल जहान॥4॥
दुख में सुमिरन सब करेजो रहीम ओछो बढ़ै, सुख में करे न कोय।<br>तौ अति ही इतराय।जो सुख में सुमिरन करेप्यादे सों फरजी भयो, तो दुख काहे होय॥3॥<br><br>टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥
खैरबिगरी बात बने नहीं, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।<br>लाख करो किन कोय।रहिमन दाबे बिगरे दूध को, मथे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥<br><br>माखन होय॥6॥
जो रहीम ओछो बढ़ैआब गई आदर गया, तौ अति ही इतराय।<br>नैनन गया सनेहि।प्यादे सों फरजी भयोये तीनों तब ही गये, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥<br><br>जबहि कहा कछु देहि॥7॥
बिगरी बात बने नहींखीरा सिर ते काटिये, लाख करो किन कोय।<br>मलियत नमक लगाय।रहिमन बिगरे दूध करुये मुखन को, मथे न माखन होय॥6॥<br><br>चहियत इहै सजाय॥8॥
आब चाह गई आदर गयाचिंता मिटी, नैनन गया सनेहि।<br>मनुआ बेपरवाह।ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा जिनको कछु देहि॥7॥<br><br>नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥
खीरा सिर ते काटियेजे गरीब पर हित करैं, मलियत नमक लगाय।<br>हे रहीम बड़ लोग।रहिमन करुये मुखन कोकहा सुदामा बापुरो, चहियत इहै सजाय॥8॥<br><br>कृष्ण मिताई जोग॥10॥
चाह गई चिंता मिटीजो रहीम गति दीप की, मनुआ बेपरवाह।<br>कुल कपूत गति सोय।जिनको कछु नहि चाहियेबारे उजियारो लगे, वे साहन के साह॥9॥<br><br>बढ़े अँधेरो होय॥11॥
जे गरीब पर हित करैंरहिमन देख बड़ेन को, हे रहीम बड़ लोग।<br>लघु न दीजिये डारि।कहा सुदामा बापुरोजहाँ काम आवै सुई, कृष्ण मिताई जोग॥10॥<br><br>कहा करै तलवारि॥12॥
जो रहीम गति दीप कीबड़े काम ओछो करै, कुल कपूत गति सोय।<br>तो न बड़ाई होय।बारे उजियारो लगेज्यों रहीम हनुमंत को, बढ़े अँधेरो होय॥11॥<br><br>गिरिधर कहे न कोय॥13॥
रहिमन देख बड़ेन कोएकहि साधै सब सधै, लघु न दीजिये डारि।<br>सब साधे सब जाय।जहाँ काम आवै सुईरहिमन मूलहि सींचबो, कहा करै तलवारि॥12॥<br><br>फूलहि फलहि अघाय॥15॥
बड़े काम ओछो करैरहिमन वे नर मर गये, तो न बड़ाई होय।<br>जे कछु माँगन जाहि।ज्यों रहीम हनुमंत कोउनते पहिले वे मुये, गिरिधर कहे न कोय॥13॥<br><br>जिन मुख निकसत नाहि॥16॥
माली आवत देख केरहिमन विपदा ही भली, कलियन करे पुकारि।<br>जो थोरे दिन होय।फूले फूले चुनि लियेहित अनहित या जगत में, कालि हमारी बारि॥14॥<br><br>जानि परत सब कोय॥17॥
एकहि साधै सब सधैबड़ा हुआ तो क्या हुआ, सब साधे सब जाय।<br>जैसे पेड़ खजूर।रहिमन मूलहि सींचबोपंथी को छाया नहीं, फूलहि फलहि अघाय॥15॥<br><br>फल लागे अति दूर॥18॥
रहिमन वे नर मर गयेनिज मन की व्यथा, जे कछु माँगन जाहि।<br>मन में राखो गोय।उनते पहिले वे मुयेसुनि इठलैहैं लोग सब, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥<br><br>बाटि न लैहै कोय॥19॥
रहिमन विपदा ही भलीचुप हो बैठिये, जो थोरे दिन होय।<br>देखि दिनन के फेर।हित अनहित या जगत मेंजब नीके दिन आइहैं, जानि परत सब कोय॥17॥<br><br>बनत न लगिहैं देर॥20॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआबानी ऐसी बोलिये, जैसे पेड़ खजूर।<br>मन का आपा खोय।पंथी औरन को छाया नहींसीतल करै, फल लागे अति दूर॥18॥<br><br>आपहु सीतल होय॥21॥
काल करे सो आज करमन मोती अरु दूध रस, आज करे सो अब्ब।<br>इनकी सहज सुभाय।पल में परलय होयगीफट जाये तो ना मिले, बहुरि करेगा कब्ब॥19॥<br><br>कोटिन करो उपाय॥22॥
बुरा जो देखन मैं चलादोनों रहिमन एक से, बुरा न मिलया कोय।<br>जब लौं बोलत नाहिं।जो दिल खोजा आपनाजान परत हैं काक पिक, मुझसा बुरा न कोय॥20॥<br><br>ऋतु वसंत कै माहि॥23॥
निंदक नियरे राखियेरहिमह ओछे नरन सो, आँगन कुटी छवाय।<br>बैर भली ना प्रीत।बिन पानी साबुन बिनाकाटे चाटे स्वान के, निर्मल करे सुहाय॥21॥<br><br>दोउ भाँति विपरीत॥24॥
रहिमन निज मन की व्यथाधागा प्रेम का, मन में राखो गोय।<br>मत तोड़ो चटकाय।सुनि इठलैहैं लोग सबटूटे से फिर ना जुड़े, बाटि न लैहै कोय॥22॥<br><br>जुड़े गाँठ परि जाय॥25॥
रहिमन चुप हो बैठियेपानी राखिये, देखि दिनन के फेर।<br>बिन पानी सब सून।जब नीके दिन आइहैं, बनत पानी गये न लगिहैं देर॥23॥<br><br>ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥26॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।<br>औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥24॥<br><br> मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।<br>फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥25॥<br><br> दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।<br>जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥26॥<br><br> रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।<br>काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥27॥<br><br> रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।<br>टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥28॥<br><br> रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।<br>पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥29॥<br><br> वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।<br>बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥30॥<br>रंग॥27॥<br/poem>