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विसाल-ओ-हिज्र से वाबस्ता तोहमतें भी गईं / सहर अंसारी

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विसाल-ओ-हिज्र से वाबस्ता तोहमतें भी गईं
वो फ़ासले भी गए अब वो क़ुर्बतें भी गईं

दिलों का हाल तो ये है कि रब्त है न गुरेज़
मोहब्बतें तो गईं थी अदावतें भी गईं

लुभा लिया है बहुत दिल को रस्म-ए-दुनिया ने
सितमगरों से सितम की शिकायतें भी गईं

ग़ुरूर-ए-कज-कुलही जिन के दम से क़ाएम था
वो जुरअतें भी गईं वो जसारतें भी गईं

न अब वो शिद्दत-ए-आवारगी न वहशत-ए-दिल
हमारे नाम की कुछ और शोहरतें भी गईं

दिल-ए-तबाह था बे-नाम हसरतों का दयार
सो अब तो दिल से वो बे-नाम हसरतें भी गईं

हुए हैं जब से बरहना ज़रूरतों के बदन
ख़याल-ओ-ख़्वाब की पिन्हाँ नज़ाकतें भी गईं

हुजूम-ए-सर्व-ओ-समन है न सैल-ए-निकहत-ओ-रंग
वो क़ामते भी गईं वो क़यामतें भी गईं

भुला दिए ग़म-ए-दुनिया ने इश्क़ के आदाब
किसी के नाज़ उठाने की फ़ुर्सतें भी गईं

करेगा कौन मता-ए-ख़ुलूस यूँ अर्ज़ां
हमारे साथ हमारी सख़ावतें भी गईं

न चाँद में है वो चेहरा न सर्व में है वो जिस्म
गया वो शख़्स तो उस की शबाहतें भी गईं

गया वो दौर-ए-ग़म-ए-इन्तिज़ार-ए-यार ‘सहर’
और अपनी ज़ात पे दानिस्ता ज़हमतें भी गईं