वीणा-पुस्तक-धारिणी भगवती / पुलकित लालदास 'मधुर'
वीणा-पुस्तक-धारिणी भगवती, ब्राह्मी जगद्व्यापिनी
विद्या-बुद्धि-प्रदायिनी, शुभमयी, हो अज्ञता-नाशिनी।
जै जै कोविदवृन्द-चित रमणी, जै जै जगद्वन्दिनी
रक्षा ई नव भारतीय करु माँ, सानन्द कादम्बिनी।
हो राजर्षि विदेह सादृश एतै राजा सुज्ञानी सदा,
ओ श्री विक्रम, कर्ण, भोज सम हो न्यायी सुदानी सदा।
हो पूज्या लखिमा तथा सुनयना तुल्या सु-रानी सदा,
ओ हो पूर्व समान मैथिल प्रजा सर्वत्र मानी सदा।
हो बन्धुत्व विकास, नाश कटुता, सम्पूर्ण संकीर्णता,
ओ हो नाश कदर्यता, विषमता, सर्वाशंतः अज्ञता।
ईर्ष्या, द्वेष, अभद्रता, पिशुनता, आलस्य, लोलूपता,
हो दारिद्रय अकल्प और शठता ओ नाश कामूकता।
हो संहार नृशंसता, विकलता औरो अहम्मन्यता,
ओ हो नष्ट असौम्यता, अनयता ओ दम्भता-धूर्त्तता,
आबै भाव स्वतन्त्रताक सभमे, भागै पराधीनता,
ओ अन्यान्य सुदेश सादृश एतै जागै सुराष्ट्रीयता।
हो शिक्षाक प्रचार पूर्ण, सभ हो ज्ञानी, मनीषी तथा
मेधावी सुविवेकवान, क्षम ओ स्नेही मनस्वी तथा।
श्री-सम्पन्न, वदान्य, सौम्य, विनयी ओ साहसी उद्यमी,
उत्साही, सुदयालु, कर्मठमना, न्यायी तथा संयमी।
हो सर्वाधिक व्यक्ति देश-हित में सर्वस्व त्यागी एतै,
हो सर्वाधिक व्यक्ति मातृ-महि ओ भाषानुरागी एतै।
भागै कायरता तथा कुरुचिता ध्वंसी अकर्मण्यता
ओ भागै अपरुढ़िता कुमतिता, व्यापै महावीरता।