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वृद्ध असमय ही जवानी हो गई / चंद्रभानु भारद्वाज
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वृद्ध असमय ही जवानी हो गई;
ज़िन्दगी किस्सा कहानी हो गई।
रेत बनकर रह गई बहती नदी,
और जड़ चंचल रवानी हो गई।
वक्त का हर बोझ कन्धों पर लदा,
उम्र झुक झुक कर कमानी हो गई।
खाद पानी या हवा का है असर,
कैक्टस सी रातरानी हो गई।
रात करवट और दिन उलझन हुए,
एक बेटी जब सयानी हो गई।
बात परदे में ढंकी शालीन थी,
खुल गई तो छेड़खानी हो गई।
आपने दुखती रगों को जब छुआ,
पीर भी कितनी सुहानी हो गई।
जो न आई होंठ तक संकोचवश,
बात आंखों की जबानी हो गई।
देख 'भारद्वाज' नज़रों का कमाल,
बर्फ पिघली और पानी हो गई।