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वृन्दा-विपिन तपन-तनया-तट शोभित / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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वृन्दा-विपिन तपन-तनया-तट शोभित पादप-लता तमाम।
कटि मुरली, घिर रहे मुग्ध गौ-गोपी-गोपोंसे अभिराम॥
अलंकार-भूषित तन, सुन्दर कण्ठहार, बघनखा ललाम।
मोर-मुकुटधर क्षीर-पात्र कर लिये खड़े मन-मोहन श्याम॥