भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे तटस्थ रहना चाहते हैं / गुलज़ार हुसैन
Kavita Kosh से
वे बड़े लेखक, बड़े चित्रकार
बड़े पत्रकार और बड़े अभिनेता हैं
लेकिन वे देश में सबसे बड़ी-जटिल समस्याओं को पैदा करने वाले घटनाक्रमों पर
एक शब्द भी नहीं बोलते हैं
वे लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के आरोपियों
की रिहाई पर चुप हैं
वे चौरासी के सिख विरोधी दंगे और गुजरात में हुए कत्लेआम के मुद्दे पर पौधे में पानी देते हुए सिगरेट से धुआं निकालते हैं
पर जुबान नहीं खोलते
वे बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने के मुद्दे पर कोई राय नहीं देना चाहते हैं
वे तटस्थ रहना चाहते हैं
ताकि उनकी कला सबके लिए हो
हत्यारों के लिए भी
और दुर्व्यवस्था के शिकार लोगों के लिए भी
क्या वे सचमुच महान कलाकार हैं
जिनकी कलाकृतियों में कोई आवाज़ नहीं है?