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वेदना / बेढब बनारसी
Kavita Kosh से
आह वेदना मिली विदाई
निज शरीर की ठठरी लेकर
उपहारों की गठरी लेकर
पहुँचा जब मैं द्वार तुम्हारे
सपनोंकी सुषमा उर धारे
मिले तुम्हारे पूज्य पिताजी मुझको कस कर डांट बतायी
प्राची में ऊषा मुसकायी
तुमसे मिलने की सुधि आयी
निकला घर से मैं मस्ताना
मिला राह में नाई काना
पड़ा पाँव के नीचे केला बची टूटते आज कलाई
चला तुम्हारे घर से जैसे
मिले राह में मुझको भैंसे
किया आक्रमण सबने सत्वर
मानों मैं भूसे का गट्ठर
गिरा गटर में प्रिये आज जीवनपर अपने थी बन आयी
अब तो दया करो कुछ बाले
नहीं संभलता हृदय संभाले
शान्ति नहीं मिलती है दो क्षण
है कीटाणु प्रेम का भीषण
'लव' का मलहम शीघ्र लगाओ कुछ तो समझो पीर पराई