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वैक्यूम क्लीनर / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
छुट्टी वाले दिन
बीवी मेरी
वैक्यूम क्लीनर से
करने लगती सफाई घर की
छतों के कोने में
सोफे की नुक्क्ड़ों में
छुपी जमी धूल
मकड़ियाँ नज़रें चुरा कर
बना लेतीं जाले
बार-बार खींच लेता
वैक्यूम क्लीनर
कहता हूँ उस से
मेरे भी ज़हन में
सदियों से जमी है गर्द
संस्कारों की
फलसफों के जाले
लटकते जगह-जगह
बासी यादों की लगी फफूंद
रिश्तों की मैल दीवारों पर
मन के अँधेरे तहखानों में
कहता हूँ
खींच लो
वैक्यूम क्लीनर के साथ
मेरे दिमाग में फँसी
सब यादों की मकड़ियां
बुनती रहतीं हैं जाले हमेशा
उलझा रहता है मन
गर्द संस्कारों की
जीने को बना देती
रसहीन
बेस्वाद
खींच लो
मेरे भीतर से
सारी फ़लसफ़ों की धूल
बना दो मुझे
एक बार फिर से
नया...नवेला...।