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वो इस जहाँ का खुदा है / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
वो इस जहाँ का खुदा है, मुगालता है उसे
हैं सब बुरे वो भला है, मुगालता है उसे
उछालता है वो कीचड़ लिबास पर सबके
और खुद दूध धुला है, मुगालता है उसे
नजर के सामने इक चीज जो चमकती है
फलक पे चाँद खिला है, मुगालता है उसे
गई है कान में सरगोशियाँ सी करके हवा
कुछ उससे मैंने कहा है, मुगालता है उसे
चमकती रेत में डाली जरूर है उँगली
पर उसका नाम लिखा है, मुगालता है उसे
है कुछ मुक्तक कुछ में जलता बुझता हुआ
किसी सूरज का सगा है, मुगालता है उसे