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वो उनकी लुगाई है / विजय वाते
Kavita Kosh से
चेहरे पर चमक ऐसे कि दिल्ली की लुनाई है
जो गाँव मे बैठी है वो उनकी लुगाई है
मक्कार खुदाओं से बेहतर तो मदारी है
दिल खोल के कहता है हाथों की सफाई है
हड़ताल पे टीचर है बच्चे हैं सनीमा में
बबली ने किताबों में इक चिट्ठी छिपाई है
इंसान को जीने का कोई न हुनर आया
ये मेरे मदरसों की क्या खूब पढ़ाई है
बीमार कहाँ जाएँ मजरूह कहाँ जाएँ
सरकारी दवाखाने मरहम न दवाई है
ईनाम के लालच दो या धौंस दो जिल्लत की
मैं क्यों न कहूँ वो सब जो तल्ख सचाई है
शहजादा नहीं इसमें शहजादी नहीं इसमें
ये कैसी कहानी है ये कैसी रुबाई है
मिलते हैं खुदा अक्सर रब तेरी खुदाई में
वो शख्स कहाँ जिसके पैरों में बिवाई है