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वो एक नाम जो दरिया भी है किनारा भी / 'असअद' बदायुनी

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वो एक नाम जो दरिया भी है किनारा भी
रहा है उस से बहुत राबता हमारा भी

चमन वही के जहाँ पर लबों के फूल खिलें
बदन वही के जहाँ रात हो गवारा भी

हमें भी लम्ह-ए-रुख़्सत से हौल आता है
जुदा हुआ है कोई मेहर-बाँ हमारा भी

अलामत-ए-शजर-ए-सायादार भी वो जिस्म
ख़राबी-ए-दिल-ओ-दीदा का इस्तिआरा भी

उफ़ुक़ थकन की रिदा में लिपटता जाता हूँ
सो हम भी चुप हैं और इस शाम का सितारा भी