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वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता / रियाज़ ख़ैराबादी

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वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
किस घर में ख़ुशी होती है मातम नहीं होता

तुम जा के चमन में गुल-ओ-बुलबुल को तो देखो
क्या लुत्फ़ तह-ए-चादर-ए-शबनम नहीं होता

क्या सुर्मा भरी आँखों से आँसू नहीं गिरते
क्या मेहंदी लगे हाथों से मातम नहीं होता

कुछ और ही होती हैं बिगड़ने की अदाएँ
बनने में सँवरने में ये आलम नहीं होता

मिटते हुए देखी है अजब हुस्न की तस्वीर
अब कोई मरे मुझ को ज़रा ग़म नहीं होता

कुछ भी हो ‘रियाज़’ आँख में आँसू नहीं आते
मुझ को तो किसी बात का अब ग़म नहीं होता