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वो गीत / वंदना मिश्रा
Kavita Kosh से
वो गाती थी
"मेरी भीगी भीगी-सी पलकों में रह गए.।"
गीत को बिना पलकें भिगाए
पर गाने के बाद
उसकी आँखों में अजीब सूनापन
तैरने लगता था
लड़कियाँ आपस में फुसफुसाती थी
ये ज़रूर किसी से प्रेम करती थी
जैसे हत्या से कम न हो ये अपराध
उस तक भी पहुँचती होगी ये आवाज़े
पर कहती नहीं थी कुछ भी
हाँ उसके गीतों की डिमाण्ड बढ़ती जा रही थी
सीनियर लड़कियाँ भी इसी गीत की फरमाइश करती
और वह गाती, उदास होती
और अटकलें तेज़ होती जाती
कभी पूछ नहीं पाई
और उसे कभी इतना
विश्वास नहीं हुआ कि
बता सके खुद अपना दर्द
पता नहीं कहाँ होगी
पर यह गीत उसके साथ
लोगों की ओछी सोच
की याद भी
दिला देता है।
किसी को क्यों होना चाहिए
इतना उदास
कि गीत भी न बहला सकें!