भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो जो आए हयात याद आई / ख़ुमार बाराबंकवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

वो जो आए हयात याद आई
भूली बिसरी सी बात याद आई

कि हाल-ए-दिल उनसे कहके जब लौटे
उनसे कहने की बात याद आई

आपने दिन बना दिया था जिसे
ज़िन्दगी भर वो रात याद आई

तेरे दर से उठे ही थे कि हमें
तंगी-ए-कायनात याद आई