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व्यवसायी / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
Kavita Kosh से
गंधी - गतर - गतर मे अतर मलि पहुँचल मेहतर गाम
डाँटल गंधी केँ, हटह! केहन गन्हाइछ घाम!!92।।
ई गुलाब, ई केबड़ा, आ’ खस अतर अतूल
सुनि पूछल - पुनि कहाँ अछि तीरा तगर अढूल?।।93।।
सोनार - की चानी नहि गढ़य ओ, की नहि पीटय ताम?
सोन क गौरब देखिकेँ धरय सोनारे नाम!!94।।
तमोली - ने सोना - चानी गढ़ी, मे मधु मधुर, न इत्र
तदपि मुँह क लाली अहिँक बलहिँ तमोली मित्र।।95।।