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व्यापारी युग से / मोहन अम्बर
Kavita Kosh से
ऐसे क्यों मोल रहे ऐसे क्यों तोल रहे?
मेरा ये नहीं मोल, मेरा ये नहीं तोल।
हरी-हरी दूब पर
जीवन भर ऊब कर
अपना लूं कंठ दबा गा न सकूं एक बोल
मेरा ये नहीं मोल, मेरा ये नहीं तोल।
ऐसे क्यों मोल रहे ऐसे क्यों तोल रहे?
आँसू की बूँद-बूँद
पी जाऊँ नयन मूँद
दुख वाले आँगन में बजवाऊँ व्यर्थ ढ़ोल
मेरा ये नहीं मोल, मेरा ये नहीं तोल।
ऐसे क्यों तोल रहे ऐसे क्यों मोल रहे?
तुम जैसी बात कहूँ
दिन को भी रात कहूँ
सच का दूँ साथ नहीं गलती की ढकूँ पोल
मेरा ये नहीं मोल, मेरा ये नहीं तोल।
ऐसे क्यों मोल रहे ऐसे क्यों तोल रहे?
मेरा ये नहीं मोल, मेरा ये नहीं तोल।