शंख घोष / परिचय
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शंख घोष
2021 में बांग्ला साहित्य का एक युग का अचानक अन्त हो गया । कोरोना महामारी एक मूर्धन्य साहित्यकार को निगल गई। वे बांग्ला साहित्य में एक नक्षत्र की तरह थे, जिसके टूटने से पूरी बांग्ला साहित्य बिरादरी सकते में है ।
शंख घोष के रक्त में विप्लव इस तरह घुला-मिला था कि उन्हें उनकी रचनाओं से अलग करने का मतलब उनकी आत्मा को छीन लेने जैसा ही था । उनकी रचनाएँ सिर्फ नए ही नही, वरिष्ठ साहित्यकारों को भी प्रेरणा देती हैं । सबको उनके साहित्य से एक ऊर्जा मिलती थी ।
उनका जन्म भारत-भूमि के बँटवारे से पहले के पूर्वी बंगाल यानि आज के बांग्लादेश के चाँदपुर में 05 फरवरी सन 1932 को हुआ था । उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पाबना में प्राप्त की और भारत आने के बाद उच्च शिक्षा कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से, जहाँ उन्होंने ’बांग्ला भाषा व साहित्य’ में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की । आगे चलकर उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की ।
उन्होंने अध्यापन को अपने पेशे के रूप में चुना और शियालदाह के बंगबासी कोलिन फिर सिटी कॉलेज और जादबपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य किया । उनका असली नाम चित्तप्रिय घोष है और उनका छद्मनाम शंख घोष, जो उनका लेखकीय नाम बन गया। उनके पिता का नाम मनीन्द्र कुमार घोष और माता का नाम अमलाबाला था ।
1977 में उन्हें काव्य-संग्रह – "बाबर की प्रार्थना" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया । 1977 में ही उन्हें नरसिंह दास पुरस्कार, 1989 में रबीन्द्र पुरस्कार, बांग्ला कविता की एक विशाल एन्थोलॉजी के सम्पादन के लिए उन्हें सरस्वती सम्मान, अनुवाद के लिए 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2011 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों पद्मभूषण से सम्मानित हुए ।
उनकी रचनाओं में हमें उनकी राजनैतिक चेतना मुखर रूप में देखने को मिलती हैं । भारत की केंद्रीय सरकार के विरुद्ध भी उन्होंने क़लम चलाई और जो कविता लिखी, उसका शीर्षक है – माटी । यह कविता उन्होंने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए ’नागरिक संशोधन बिल’ के ख़िलाफ़ लिखी थी । उन्हें इस बिल पर गहरी आपत्ति थी ।
उन्होंने बच्चों के लिए भी रचनाएँ रचीं। वे कवि रवीन्द्रनाथ के साहित्य के गहरे जानकार थे । रवीन्द्रनाथ पर उनकी किताब एक महत्वपूर्ण शोधग्रन्थ माना जाता है। इस दृष्टि से भी वे बंगाली पाठकों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध थे ।
उनका काव्य जितना उत्कृष्ट था, उतना ही उनका गद्य भी दिलचस्प था। उनमें विशेषकर उनके आलेख, यात्रा वृत्तान्त, स्मृति लेख, अंतरंग विश्लेषण और आलोचना उल्लेखनीय है।
उनके प्रमुख कविता-संग्रह हैं —
1. दिन गुली रात गुली 1956
2. एखोन सोमोय नोय 1967
3. निहित पाताल छाया 1967
4 . बाबोरेर प्रार्थना 1976
5. मूर्ख बड़ो सामाजिक नोय 1994
इनके अलावा उनके और भी कई कविता-संग्रह हैं।
बेहद दुख की बात यह है कि 21 अप्रैल 2021 को साहित्य जगत के इस चमकते सितारे को कोरोना महामारी ने निगल लिया ।
अस्पताल जाने की उनकी इच्छा नही थी, इसलिए वे 14 अप्रैल 2021 से ही अपने घर मे एकान्तवास में थे । 21 अप्रैल की रात नींद में ही उन्होंने आख़िरी सांस ली । मृत्यु के वक़्त उनकी उम्र 90 वर्ष थी ।
शंख घोष की मृत्यु पर बांग्ला के कवि जय गोस्वामी ने कहा — एक महावटवृक्ष आज गिर गया । वे थे हमारी जाति के विवेक ।
साहित्यकार शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय ने कहा — शंख घोष की मृत्यु से मुझे लग रहा है जैसे मेरे सिर के ऊपर से छत हट गई है । आज मेरा मन बेहद दुखी है ।
शंख घोष की मृत्यु पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी शोक व्यक्त किया और कहा कि वे हमारे गर्व थे । उन्होंने कहा कि शंख घोष को गीत और सेल्यूट पसन्द नही था। उनका मान रखते हुए उन्होंने उनका अन्तिम संस्कार राष्ट्रीय सम्मान के साथ करने का आदेश दिया। उनका अन्तिम संस्कार सादे तरीके से और शान्त वातावरण में सम्पन्न हुआ ।