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शक्ति / सुरेश सलिल
Kavita Kosh से
शक्ति अब मान के गुमान के पाश में
क्रुद्ध नहीं, पभीत, विवश
नियति पड़ी लाश में
कभी सिंहवाहिनी थी
थी प्रवीणा हंसवाहिनी
गहे कर वीणा
(सतयुग के मिथक में
पिता की कुदृष्टि से
प्रवीणा हुई क्षीणा)
करयुग में फूली-फूली
कलयुग में गली गली
भटकी भ्रमी करमजली
अन्त हुआ नाश में ।