भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शनिवार / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
हर शनिवार
चला आता है
इक नन्हा-मुन्ना-सा बच्चा
शनि टालने मेरे द्वार ।
लिए हाथ में छोटी लुटिया
आंखों में इक भूखा ज्वार
दर्द भरी एक आह-पुकार
दे दे माई
दे दे माई
मुझको भी थोड़ा-सा प्यार
हो जाएगा भला तुम्हारा
मैं आया हूँ शनि टालने
तेरे द्वार
किसको रोऊं
किसको कोसूं
बातें है सारी बेकार
पर मैं सोचूं बारम्बार
किसने उसको शनि बनाया
कौन है इसका ज़िम्मेदार