भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब अंधेरी है रौशनी लाओ / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
शब अंधेरी है रौशनी लाओ
उस के जल्वों की चांदनी लाओ
ऐ हवाओं! वो खो गया है कहां
उस की ख़ुशबू ही तुम कभी लाओ
छुप के बैठे हो लाख पर्दों में
रूबरू आ के हर खुशी लाओ
दूर माहौल की हो बेरंगी
उन की आंखों से दिलकशी लाओ
हम मसीहा-नफ़स कहेंगे तुम्हें
ज़र्द चेहरों पे ताज़गी लाओ
जो तरसते हैं मुस्कुराने को
ऐसे होंटो पे नग़मगी लाओ
उस की रहमत हो मेहरबाँ 'अंजुम'
अपनी आंखों में कुछ नमी लाओ