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शब्द / नीलेश रघुवंशी
Kavita Kosh से
वातावरण की ख़ामोशी
उसमें--
गूँजते तुम्हारे शब्द
शब्दों में बंधा मेरा मन
जिसे ढोते जा रहे हैं तुम्हारे शब्द
किसी पुल की तरह
पुल वहीं है अब भी
शब्द आगे निकल चुके हैं।