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शब्द / हरीशचन्द्र पाण्डे
Kavita Kosh से
ओर सूरदास! सँभल के
आगे गड्ढा है...
सुनते ही रुक गया सूरदास
गड्ढे में गिरने से बच गया
बच तो तब भी जाता
अगर कोई कहता
जो अन्धे रुक जाओ...आगे गड्ढा है
पर तब उसके भीतर एक बड़ा गड्ढा बन सकता था
कविताई तो दी सूरदास ने
शब्द को एक पर्याय भी दिया
कानों को अन्दरूनी मलहम दिया
सूरदास के बाद ही तो आया होगा भाषा के कोश में यह पर्यायवाची
सूर के पहले भी ले जा सकते हैं क्या इसे हम
कह सकते हैं
महाभारत चरित्र धृतराष्ट्र जन्म से सूरदास था?
शब्द की काया को
समय के खोल की ज़रूरत है क्या?