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शब्द और रंग - 2 / सुरेन्द्र स्निग्ध
Kavita Kosh से
बीत गई न रात
हाँ, बीत ही गई
देखिए न, थोड़ा उधर देखिए
पंछियों का एक बड़ा-सा झुण्ड
समुद्र की लहरों को छूता हुआ
अभी-अभी
गुज़र गया है पूरब की ओर
घोल गया है लहरों में
हलचल और कलरव का संगीत
फैला गया है चारों ओर
इसी संगीत की ख़ुशबू
मछुआरे पैठ गए हैं
समुद्र में
छोटी-छोटी नौकाओं के साथ
और
सूरज के उगने के पहले की लाली
बिछ रही है लहरों पर
निस्तेज हो रहा है
रात भर का चला चाँद
उठिए,
चलिए अपने-अपने कमरे में
उठ रहे होंगे
साथ के लड़के और लड़कियाँ
कहेंगे पागल हैं हम लोग
छत पर बैठे रह गए सारी रात
और भी कुछ कह सकते हैं
और भी कुछ......।