भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे / सफ़िया शमीम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो हसरत-ए-बहार न तूफ़ान-ए-ज़िंदगी
आता है फिर रूलाने का अब्र बहार क्यूँ

आलाम-ओ-ग़म की तुंद हवादिस के वास्ते
इतना लतीफ़ दिल मिरे परवरदिगार क्यूँ

जब ज़िंदगी का मौत से रिश्ता है मुंसलिक
फिर हम-नशीं है ख़तरा-ए-लैल-हो-नहार क्यूँ

जब रब्त-ओ-ज़ब्त हुस्न-ए-मोहब्बत नहीं रहा
है बार-ए-दोश हस्ती-ए-ना-पाएदार क्यूँ

रोना मुझे ख़िज़ाँ का नहीं कुछ मरग ‘शमीम’
इस का गिला है आई चमन में बहार क्यूँ