भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शमए उल्फ़त जला गया कोई / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
शमए उल्फ़त जला गया कोई
तीरगी सब मिटा गया कोई
मेरी हर बात अनसुनी कर के
बात अपनी सुना गया कोई
दिल में नज़रों की राह से आकर
सिलसिला इक बना गया कोई
उसकी चाहता में थी तपिश इतनी
दिल का दामन जला गया कोई
वक़्ते-रुख़्सत बहा के कुछ आंसू
आज हम को रुला गया कोई
दिल सुलगता है आज भी अंजुम
आग ऐसी लगा गया कोई।