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शमए उल्फ़त जला गया कोई / ईश्वरदत्त अंजुम

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शमए उल्फ़त जला गया कोई
तीरगी सब मिटा गया कोई

मेरी हर बात अनसुनी कर के
बात अपनी सुना गया कोई

दिल में नज़रों की राह से आकर
सिलसिला इक बना गया कोई

उसकी चाहता में थी तपिश इतनी
दिल का दामन जला गया कोई

वक़्ते-रुख़्सत बहा के कुछ आंसू
आज हम को रुला गया कोई

दिल सुलगता है आज भी अंजुम
आग ऐसी लगा गया कोई।