भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शमशीर बरहना माँग ग़ज़ब बालों / ज़फ़र
Kavita Kosh से
शमशीर बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी है
जूड़े की गुंधावत बहर-ए-ख़ुदा ज़ुल्फ़ों की लटक फिर वैसी है
हर बात में उस के गर्मी है हर नाज़ में उस के शोख़ी है
आमद है क़यामत् चाल भरी चलने की फड़क फिर वैसी है
महरम है हबाब-ए-आब-ए-रवा सूरज की किरन है उस पे लिपट
जाली की ये कुरती है वो बला गोटे की धनक फिर वैसी है
वो गाये तो आफ़त लाये है सुर ताल में लेवे जान निकाल
नाच उस का उठाये सौ फ़ितने घुन्घरू की छनक फिर वैसी है