शरद / प्रतिपदा / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
शिशु-सजल अंचल ‘उतरा’ - जननीक चंचल- ‘हस्त’
पान करइत ‘पय’, शरद - शिशु जन्म लेल प्रशस्त
किशोरी-चरण - शतदल, कर - कमल, मुख - चन्द्र रश्मि पसारि
नयन - खंजन चटुल, सम्बर्धित शरद सुकुमारि
नील शैवाल क शिरोरुह खचित कमलक फूल
कुमुद दन्तावलि विशद सरिताक शुभ्र दुकूल
उष्म - शिशुता गत, अनागत शिशिर, यौवन सन्धि
जकर कौमार्यक सरस सरसिज दिगन्त सुगन्धि
तरुणी-पहिरि चित्रा’ - ऽऽभरण सद्यः नैश शीत स्नात
इन्दु - वदना शरद-युवती ठाढ़ि सरिता - कात
सिङरहारक हार उर तीराक टिकुली साटि
हंस - नूपुर नृत्य - निपुणा सुरभि जग भारि बाँटि
अरुण किरणेँ भेल सिन्दूरित जकर सीमन्त
शरद ऋतु-सुन्दरी अंगक सुछवि नखत अनन्त
कौमुदी क महोत्सवक रस - रास पुलकित अंग
आगमन मे नगर भरि दीपावलीक प्रसंग
प्रेम - स्वातिक बिन्दु याचक जगत चातक भेल
जनिक प्रेमक वश पुरुष पुरातनहु उठि गेल
जनिक हासेँ कुमुद धवलित दिशा ज्योत्स्ना - स्नात
जयतु नवयौवनवती ऋतु शरद विकसित - गात
वृद्धा - हन्त! हेमन्तक पवनसँ यदपि कम्पित गात
भेलि वृद्धा शरद धवलित काश केश निपात
किन्तु तखनहु अन्न - पूर्णा बाध अंचल बान्हि
शस्य सन्तति हेतु जोगवथि शरद-जननी आनि