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शरद पूनो के चाँद / हरींद्र हिमकर
Kavita Kosh से
मेरे दोने में भी
भरना चाँदनी
चाँद जरा
मेरे छप्पर पर-
भी आना
आज शरद पूनो की रात
सुहानी है
ऊपर सोना
बीच-बीच में चानी है
आज निहोरा है
जब अमृत धार गिरे
चाँद जरा
मेरे दोने पर बरसाना
हमने भी गोबर से
घर लिपवाया है
हमने भी पत्तों पर
खीर सजाया है
याद रहे
जब कंगूरों पर धार गिरे
कुछ बूँदों को
झोंपड़ियों पर छिटकाना
ऊपर वाले
खूब नहा लें
धार में
नीचे वाले
काटें रात अन्हार में
अच्छा लगता तुझे
लुटाना चाँदनी
लेकिन अच्छा नही
किसी को तरसाना